बुढ़ापे की सनक
बुढ़ापे की सनक
बुढ़ापा, न रुकने वाला सफ़र
बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक
चाहे अनचाहे, आनेवाली डगर
ढलती है उम्र शनै शनै निरंतर
बुढ़ापा यादों और अनुभवों की
गठरी
अच्छे बुरे व्यवहारों का हिसाब
खट्टे मीठे व्यंजन सी जिंदगी
भरती जाती हैं जीवन की किताब
बुढ़ापा, उम्र का आखिरी पड़ाव
कभी स्थितप्रज्ञ तो कभी सनकी
बीच बीच मैं टोका टोकी फिजूल की
ना किया करो अपने ही मन की
फैसले चाहे जैसे भी हो
लेना है जरूरी
जी है जैसे आपने जिंदगी
नई पीढ़ी भी है इसकी अधिकारी
बुढ़ापे को ढाल बनाकर
बात न अपनी मनवा लिया करो
छोटो की भावनाओं का
आदर सम्मान भी कर लिया करो
वरना सनकी कहकर दुत्कारे
जाओगे
धीरे धीरे दिल से उतरते जाओगे
ढलती उम्र की इज़्ज़त करना
सीखो तुम
बिन मांगी सलाह देने से बचो तुम
घर परिवार पर आशीष
तुम्हारी बनी रहे
सुखी हो सारे लोग
सिर पर हाथ बना रहे
जबतक हो जीवित
जायदाद ना किसी को देना तुम
भूल से यह ग़लती मत करना
शान से जीवन गुजारो तुम
