बसंत
बसंत
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पीले-पीले फूल खिले हैं ,आयी है खलियानों में बहार।
हरियाली की पहन चूनरी,धरा ने किया नवल श्रृंगार।। ।
मंद-मंद मुस्काती सर्दी , शीतल मृदुल-मृदुल है बयार।
धूप सुहानी दीवारों पर , खिली-खिली करती उजियार।।
कोयल गाए गीत सखी सुन आये हैं ऋतुराज मही पर।
वृक्ष, तलैयां, नदी,सरोवर,पहने मणि,माणिक्य के हार ।।
बघरो चहुं दिस रंग बसंती फूली सरसों,हरी गेहूँ की बाली।
डाली-डाली नव कोंपल ले,कह रहीं मनवा खोलिए द्वार।।
