बसंत ऋतु
बसंत ऋतु
नव आशाओं का संचार दो ऋतुराज ,
पर्ण विहीन तरुओं का श्रृंगार कर दो ऋतुराज।
रुग्ण हो गया है नीरस जीवन मनुज का,
रोग मुक्त सर्वस्व संसार कर दो ऋतुराज।
निराशा की गोद में न सो जाए मन,
यह विनती स्वीकार कर लो ऋतुराज।
रंग दो आज तन पर बसंती भस्म,
तामसिक जीवन का उद्धार कर दो ऋतुराज।
कपाल पर विषाद की रेखाएं हैं छायीं,
अधरों पर हँसी की बौछार कर दो ऋतुराज।
खुशियां मनाने को आतुर हृदय हमारा,
सफल जिंदगी का त्योहार कर दो ऋतुराज।
कोयल की कूह- कूह ,पंछियों का कलरव ,
जीवन को प्रेम मल्हार कर दो ऋतुराज।
पाषाण हो रहा है हृदय मानव का,
झंकृत उर के तार कर दो ऋतुराज।
पतझड़ रूपी व्याधि न सताए प्रकृति को,
चिर आनंदित बहार कर दो ऋतुराज।
