बस इतना ही बहुत है
बस इतना ही बहुत है
भले ही, मझधार में इस जीवन की नौका हो,
मैं हूं ,और तुम भी हो,बस, इतना ही बहुत है।1।
भंवर में फंसी ये कश्ती,किनारा भी पास नहीं,
तुम हो एक खेवनहार,बस इतना ही बहुत है।।2।।
मंथर चलती नौका में, कोई पतवार , नहीं है,
हौसला है,इन बाजू में,बस, इतना ही बहुत है।।3।।
इधर हम इन बाजू का,उस ओर तुम धैर्य से
लहरों पे , चप्पू मारेंगे,बस,इतना ही बहुत है।।4।।
हो भले, निर्जन स्थल,खुशी के पर्व मनायेंगे,
मैं हूं तुम हो,धीरज है,बस, इतना ही बहुत है।।5।।
