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Anandbala Sharma

Others

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Anandbala Sharma

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बस एक बार

बस एक बार

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बस एक बार

कुछ ऐसा हो जाए

समय बहने लगे

विपरीत दिशा में

फिर खेलूं

अठखेलियाँ बचपन की

माता-पिता की गोद में

मचल कर करूँ

एक बार फिर जिद

चाँद को पाने की


बस एक बार

आसमान में उड़ती

पतंगों की डोर बनूं

तनू ऐसे कि पतंग 

न फटे कोई 

न कटे कोई 

लहराए परचम की तरह

आकाश में

सदा सदा के लिए 


बस एक बार

फिर 

दस्तक दूँ

मन के द्वार पर

खुल जाएँ कपाट मन के

बहने दूं वह सब

जो जमा हुआ है

मन की तलहटी में

काई की तरह


बस एक बार

कुछ ऐसा हो जाए

बनूं पंछी

पंख खोले

भरूं उड़ान 

तोड़ दूं इस भ्रम को

कि क्षितिज 

को पा नहीं सकते।


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