बरसात
बरसात




बरसात का पानी
जाने कब बरसा था
जाने कब गिरी थी
मेरे आँगन में
वो बारिश की
नन्ही - नन्ही बूंदें
जिन्होंने मुझे फिर
लौटा दिया था
मेरा वो मासूम बचपन
जहाँ मैं मूर्ख था
बेफ़िक्र था
खुश था और सच कहूं
तो सच्चा भी था
आज कहाँ बरसता है
वो रिमझिम फुहार पानी
आजकल कहाँ रही
वो नदी नालों वाली मस्ती
बस्ती तो आज भी है
बस बसती नहीं आजकल....