"बरगद की छांव"
"बरगद की छांव"
मेरे गांव में बरगद का पेड़,
बचपन से देता रहा है छांव।
दोस्तों संग बीता जहाँ है बचपन,
लोगों को देता रहा है ठावँ।।
बचपन में बरगद के पेड़ के नीचे,
लगती गाँव की चौपाल जहाँ।
सूना सूना लगता है अब,
वक्त नहीं जाने अब चला कहाँ।।
बरगद के पेड़ के जैसा ही छांव,
मुझे दादा दादी का प्यार मिला।
माँ की गोदी में मैं खेला कूदा,
पिता के प्यार से बढ़ा पला।।
यादें कितनी बचपन की आती,
गाँव के बरगद के पेड़ तले।
छुपम छुपाई व गिल्ली डंडा,
गांव में बड़ों का जहाँ प्यार मिले।।
बरगद के पेड़ के नीचे की,
अनगिनत स्मृतियां याद अभी।
याद आते तो, आँख से आंसू बहते,
मैं गाँव जाता, अब जब कभी।।
बरगद के पेड़ वर्षों से खड़े हैं रहते,
अमरत्व, दीर्घायु के प्रतीक हैं होते।
मिट्टी में जड़े गहराई से जुड़ती,
बरगद स्थिर व शक्तिशाली हैं होते।।
बरगद की छांव में पंछी जानवर पलते,
ठेले खोमचे की दुकान भी सजते।
सुकून बहुत मिले बरगद के नीचे,
बुजुर्ग के तौर पर बरगद देखे जाते।।
महिलाएं वट सावित्री का पूजा करती,
पेड़ के चारों ओर पीला धागा लपेटती।
श्रद्धा का केंद्र बनता है बरगद,
कांवर दे, धागे से राखी सा बाँधती।।
अब गाँव वीरान, न वो हंसी ठिठोली,
बरगद के तले न होती है होली।
बरगद के पेड़ की बहुत सी यादें,
बरगद के नीचे न रूकती अब डोली।।
बरगद कई पैरों वाला पेड़ कहाता,
धूप, ठंड, बारिश से हमें बचाता।
अपने घर जैसा लगता है पेड़,
बरगद की छांव हमें प्यार जताता।।
