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Sandeep Kumar

Others

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Sandeep Kumar

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बरगद की छांव में

बरगद की छांव में

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धूप बहुत है मेरे बंधु

चलो चलते हैं छांव में

समय बहुत बदल गया है

लौट चलते हैं पुराने गाँव में।।


ऊंची बिल्डिंग महल छोड़कर

चलते हैं खाली पाँव में

देखें क्या-क्या बदल गया है

मेरे छोटे से पुराने गाँव में।।


बैठ वहीं हँसी मजाक करेंगे 

कागज़ की छोटी-छोटी नाव पे

तुम भी पत्ता बिछकर लाना 

अंगूठी बनाएंगे बचपन के भाव में।।


इधर उधर घूमेंगे भटकेंगे

ढूंढेंगे हम अपने गाँव को

मिलकर और बातें करेंगे

चलो चलते हैं पुराने गाँव में।।


पीपल की उस मीठी छांव में

बरगद की लंबे लंबे राव में

झूलेंगे झूला सब मिलकर

आओ मिलते हैं पुराने गाँव में।।


जहां मिलेंगे भैंस बकरी

पंछी मिलेंगे घर द्वारों में

मिलने से बहुत दिन हो गया

आओ मिलते हैं दरबारों में।।

आओ मिलते हैं दरबारों में।।



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