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ADITYA MISHRA

Others

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ADITYA MISHRA

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बर-पेड़

बर-पेड़

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सूरज की तपन से

बदन जब चरमरा जाती थी,

शीतल छाँव बरगद के पेड़ की

हर राहगुजर को सुकूं के पल देती थी।


सड़क भले ही टूटा था

विकास अभी अधूरा था,

पर वो बूढ़ा पेड़ ही बरसों से

वीरान राह का तोहफ़ा था।


सुना है अब बात उठी है

हर गली में विकास की बात चली है,

नये सड़क बनने वाले हैं

वो बूढ़ा पेड़ भी कटने वाला है।


जो सदियों से था श्रृंगार सड़क का

उसके बिना ही नयी राह बनेगी,

पर बिन बर-पेड़ हर राही को

ये वीरान सड़क अब अंजान लगेगी।


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