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अमित प्रेमशंकर

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अमित प्रेमशंकर

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बोझ कंधो पे है वो निभाने चला

बोझ कंधो पे है वो निभाने चला

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घर से निकला शहर को कमाने चला

बोझ कंधो पे है वो निभाने चला!!


            जल गया ए शहर जल गया ए जहां

            सब कुछ जला, कुछ बचा न यहाँ

            लगी पेट की आग को बुझाने चला

            बोझ कंधो पे है वो निभाने चला!!


है चारो तरफ़,अब धुआं हीं धुआं

सागर भी सूखा, सूखा सब कुआं

बन भगीरथ, मैं गंगा को लाने चला

बोझ कंधो पे है वो निभाने चला!!


           करना मुझे है अभी सारा काम

           चलते चलूं मैं, करूं ना विश्राम

           अबकी ख़ून और पसीना बहाने चला

           बोझ कंधो पे है वो निभाने चला!!


हारा नहीं हूँ अभी भी है दम

न पीछे हटेंगे, ये बढ़ते क़दम

कुछ बाकी है फ़र्ज़, वो निभाने चला

बोझ कंधो पे है वो निभाने चला!!


           घर से निकला शहर को कमाने चला

           बोझ कंधो पे है वो निभाने चला!!

  

    


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