बनें चाकलेटी
बनें चाकलेटी
जब सम मात्रा में काले रंग में हम रंग सफेद मिलाते हैं,
तब कहीं जाकर चाकलेट सा भूरा रंग हम पाते हैं।
ज्ञान-रश्मि तम हरती अज्ञान का ,हर ओर उजाला देती है
शक्ति- सुरभित स्वादपूर्ण देनी है,यह शिक्षा चाकलेट देती है।
सुख-दुख धूप-छांव के सम ही तो, हर जीवन का हिस्सा है
कस्तूरी-मृग सम सुख की दौड़ तो,सबका अपना किस्सा है।
कल के सुख की कल्पना में हम सब,अगणित दुख ही सहते हैं
पर सुख देख दुखी अति होते जब, हम तुलना करने लगते हैं।
समस्या के आभास -मात्र से, हम निज मन दुःख से भर लेते हैं
अपनी त्रुटियों से कहीं ज्यादा, दोष परिस्थितियों को ही देते हैं।
इस दुख की काली छाया से, विचारण शक्ति क्षीण हो जाती है
पर घटने के बजाय समस्या तो , विकराल रूप में आ जाती है।
छोड़ भरोसा धैर्य-शक्ति का , हम त्वरित - लघु हल चाहते हैं
समाधान की होती है जल्दी, अक्सर त्रुटियां कुछ कर जाते हैं।
हल मिलने खुद को सराहें, और दोष सब दूजों को दे जाते हैं
सहयोग लेने को रहते लालायित,पर खुद देने से कतराते हैं।
हम कभी किसी का दिल न दुखाएं, सबको सुख बांटें और खुद सुख पाएं
क्षरण न होता है अक्षर का जगत में, जो देंगे हम ध्वनि -वही प्रतिध्वनि पाएं।
चाकलेट सा क्षणभंगुर है यह जीवन, मिटने तक सब उद्देश्य सफल कर जाएं
सुरभि लुटाएं अपने जीते जी हम और, मिटते मृदु-स्वाद-शक्ति दें जाएं।
