बंदिश
बंदिश
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तुम न पहचानो
कोई बात नहीं
लेकिन
यह भी तो मत कहो
मुझे याद ही नहीं
मालूम है बंधे है हम
सामाजिक बंदिशों में
सपने है कुछ मेरे तो
सजाये है पलकों पर
तुमने भी कुछ ख्वाब
जरूरी भी नहीं कि
मिल जाए सफर में
जब रास्ते ही हो अलग
तब कैसे हो मंजिल एक।