बंधन
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इंसान जब तक जिंदा है, सारे अपने है
कोई चाचा कोई मामा कोई फूफा है
हर कोई आपको आपके माता पिता
से पहचानता है,
उठना बैठना राम सलाम आदाब भी होता है
आँखें खुली है तो इंसान की पहचान
कई नामों से होती है,
जैसे ही आंखे बंद, इंसान इंसान कहलाने
लायक नहीं लाश बन जाती है।
जिसके साथ उठना बैठना होता था
पास जाने से भी कतराते है,
ऊपरवाले तेरे खेल निराले, हाथों में ही
तो तेरे जीवन रेखा है।
कठपुतली बनाकर तूने लीला सारे रचे है।
माता पिता भाई बहन मोह के सारे बन्धन है।