भूमिका
भूमिका
दांवपेंच की राजनीति, और
राजनीति के दावपेंच
के बीच दबा मतदाता
दिशाहीन राजनीति के कुचक्र में
स्वार्थों की टकराहट में
वह अब धीरे-धीरे
दिशामूलक राजनीति के करीब
और करीब होता जा रहा है
तटस्थता के नाटक को
असंलग्नता के निरपेक्ष मूल्य को
आदमी के खिलाफ/की गई साजिश,
मानता है और पहचानता है
अपना चेहरा
मुखौटों की भव्यता /बंदर बाँट
इसलिए, इसकी भूमिका
अब की बार होगी
निर्णायक,
होगी ही.
