भूल गए वो गीत सुहाना
भूल गए वो गीत सुहाना
भौतिकता की चकाचौंध में
सब भूले वो गीत सुहाना
वो चूल्हे को बैठ घेर कर
माँ की सेकी रोटी खाना।
कब देखी थी वो पगडंडी
जो खेतों के बीच खड़ी थी
कहाँ गई वो सखी सहेली
जो झूले के लिए लड़ी थी
भूल गए वो गुड्डे -गुड़िया
बिसर गया वो ब्याह रचाना।
वो चूल्हे...।।
नीम निबौली कच्ची अमियाँ
खट्टी-मीठी इमली खाना
घर-घर की टूटी दीवारें
छत से छत का बात बनाना
प्रेम की धारा ऐसी बहती
जिसमें मिलकर रोज नहाना
वो चूल्हे के पास....।।
अंतर्मन में कसक उठी है
बचपन की वो याद पुरानी
दादी-नानी की गोदी में
सुनते बैठे रोज कहानी
यूँ भी कश्ती भूल गई है
कागज़ वाली आज ठिकाना
वो चूल्हे के पास बैठकर
माँ की सेकी रोटी खाना।।