भावनाएं
भावनाएं
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कितने छंद क्षणिकाओं कोमल उपमाओं में गोते लगाती अविरल बहती जाती वो….!
इठलाती इतराती मस्ताती दुल्हन सी,लफ़्ज़ों के श्रृंगार में सँवर जाती वो;
कुछ पल के लिए ही सही मन को झंकृत कर जाती वो;
सुन्दर सृजन काव्यों से निकलकर,निश्छल सुन्दर नज़र आती वो;
कवि के मन के अनुरूप कल्पनाओं में विचरती दुःख दर्द विदा कर जाती वो;
ओतप्रोत,अतिश्योक्ति...भावपूर्ण हो अंतर्मन तक गुदगुदाती वो
कल्पनाओं के असीमित सागर में हिलोरें भरती मरकर भी जैसे अमर हो जाती वो.