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Kusum Lakhera

Others

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भाव जब कविता बन जाते हैं

भाव जब कविता बन जाते हैं

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भाव जब तपके निकलते हैं 

आत्मा की जलती भट्टी से ..

तब वह सिर्फ़ शब्द नहीं होते 

वह कविता बन जाते हैं !!

दुःख जब सहनशीलता 

के बाँध को तोड़कर अन्तर्मन 

को कर देता है कमज़ोर ...

तब आँसू सिर्फ़ पानी नहीं होते 

वह सुनामी होते हैं ...

तब जो भावों की बहती है सरिता 

वह भाव केवल शब्द नहीं होते

वह कविता बन जाते हैं ...

दुःख और पीड़ा से जन्म लेती हैं ...

आदर्श रचनाएँ ....

जब गहन घोर दुःख और यातनाएं 

सही न जाएं ...

तब उसको बयां न कर पाएं कोई भी उपमाएँ 

तब जो शब्द कागज़ में व्यक्त होती सम्वेदनाएँ

वह सिर्फ़ शब्द नहीं वह भाव बन जाती है कविताएँ 

जब घनघोर दर्द ...और अवसाद ...

निरन्तर करते संवाद ...तब ..जो शब्द करते प्रलाप ..

नहीं उन्हें सिर्फ़ कह सकते ... संलाप या विलाप ..

वह शब्द सिर्फ़ शब्द नहीं ... वह पावन भावनाएँ !!

कालजयी रचनाएँ बन जाते हैं !!


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