भारतीयता मेरी पहचान
भारतीयता मेरी पहचान
अध्ययन और अध्यापन हैं मेरे दो कर्म, पर अध्ययन की हो अधिकता मेरा अपना धर्म।
जब रहे मुझको सीखना रहूं विनीत और नर्म, कमियों को स्वीकारने नहीं कभी भी शर्म।
कमी बड़ी ही ज्ञान की पाता हूँ मैं अपने पास,सीख सकूं जो कुछ मिले मेरा रहता सतत् प्रयास।
मेण्टोरशिप का मौका आया मेरे पास,सोचा सीखूॅ॑गा कुछ तो नया और करूॅ॑गा सीखे का अभ्यास।
अपने प्यारे देश में सीखें मिलीं अपार,पर क्षमता के अनुरूप ही मैं कर पाया व्यवहार।
सिंगापुर इस क्रम में गया-हुआ था हर्ष अपार,पूर्ण समर्पण कर्म हित ही है इसका सार।
अपने इसी समूह में सदस्य तो थे चौबीस,बहुत सीखकर आए सब -कृपा करें जगदीश।
गरिमा भारत की बड़ी माने सकल जहान,वर्णन कीर्ति का करने में महसूस होती है शान।
मना था गणतंत्र-दिवस भी यात्रा के दौरान, तिरंगा ध्वज फहराय के गाया जब राष्ट्रगान।
विश्वगुरू के रूप में कर भारत का गुणगान,अकल्पनीय खुशियॉ॑ मिलीं पाया स्वाभिमान।
