भारतभूमि मातृभूमि
भारतभूमि मातृभूमि
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भारत वर्ष यह भूमि सदा से
भिन्न भिन्न प्रकृति की रही
किन्तु मातृभूमि भूमि की
धारा अविरल अनन्त सदा ही
इसके जन जन के हृदय में बही
इस विषय विशेष में माँ की संतान सभी
एक दूजे से बढ़ चढ़कर रही
मैं न कहता यह बात स्वयं इतिहास रही
जब जब भी संकट आता कोई
निज मातृभूमि मर्यादा पर
तब तब यह सारा जान समूह
बन पड़ता सो कर जाता है
यह मातृभक्ति का ज्वार किन्तु
संकट में ही जग पाता है
फिर संकट चाहे जैसा हो
चाहे हो वह क्रीड़ांगन
या स्वयं मृत्यु ने क्रीड़ा को
समरांगण कौतुक रचा कभी
है रही मान की बात यही
रज भी इस भारत भूमि की
प्रकृति की सब बाधाओं से
लड़ गयी मगर पीछे न हटी