बेबाक औरतें
बेबाक औरतें
बेबाक औरतें
कुछ भी कहीं भी
किसी भी हाल में
सब कुछ कह लेती हैं
हँस लेती हैं
जी लेती हैं
संग खड़े पुरुष मित्र के कांधे पर
हाथ रख कर मुस्का लेती हैं
बेबाक औरतें
फिर ये उसी बेबाकी से
नवाज़ दी जाती हैं
चरित्रहीनता की पदवी से भी
वजह क्या है ?
कंधे पे हाथ रखना ?
या सीने पर सर रखने से इंकार ?
ये बेबाक औरतें
होती बड़ी सुंदर हैं
मगर दिल से और केवल दिल से
लेकिन
इनकी सुंदरता
चाल-चलन के माप दंडों से
नहीं आंकी जा सकती
ये खुद के लिए संवरती हैं
ये खुद के लिए निखरती हैं
खुद के लिये हाँ खुद के लिये
जी खोल कभी भी और कहीं भी
हँस लेती हैं
बोल लेती हैं
और रो भी लेती हैं
बेबाक औरतें
अंदर से बहुत टूटी सी होती हैं ये औरतें
बस टूट के निशान पर
बेबाकी का साट भर होता है
शायद घुटती हैं खुद में
अंदर अंदर कुछ कचोटता है
खुलेपन की बिंदास मुस्कुराहट ओढे़
खुद ही खुद से लड़ती हैं बेबाक औरतें
बहुत मुश्किल हो जाता है इन्हें समझना
जब कोई बिन जाने समझे
गुनगुना उठता है
'तुम इतना जो मुस्कुरा रही हो'
तब अपने आपको
अपने ही अंदर-अंदर समेटते
सिहर उठती हैं
काँप उठती हैं
ये बेबाक औरतें