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shaily Tripathi

Others

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बे-दर्द ज़माना

बे-दर्द ज़माना

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मुए जहान में मर्दों की बड़ी आफ़त है

हँस के ढोते हैं कई बोझ यह शराफ़त है

जिम्मेदारी हैं बड़ी, काम बहुत करते हैं

ध्यान अपनों के साथ ग़ैर का भी रखते हैं

सभी की मुश्किलों में साथ दिया करते हैं, 

बहुत से नेक काम, बा-ख़ुशी ये करते हैं 


बेचारे मर्द अगर मुश्किलों में पड़ते हैं 

नज़रंदाज इन्हें लोग किया करते हैं 

ख़ुद की कठिनाइयों से आप ही निबटते हैं 

तमाशबीन से अवाम खड़े मिलते हैं 

इसी विडंबना से, मर्द दुःखी रहते हैं

अपने ज़ख्मों पे दवा, ख़ुद ही लगा लेते हैं 


किसी अपंग को भी पूछता न कोई है

पार करनी है सड़क, साथ में न कोई है

बुरा दस्तूर है जनता का, इस ज़माने का

लड़कियॉं देख, फिसलता है दिल, दिवाने सा 

दिक्कतें एक सी हैं, आदमी औ' लड़की को

राह दिखती नहीं है, एक सी ही, दोनों को 

मर्द अक्सर यहाँ भी बे-सहारा रहता है 

जबकि लड़की को साथ और सहारा मिलता है 


तुम सुनो, सीख लो बेदर्द ज़माने वालों! 

ज़मीर अपना जगा लो बन्द-नज़रें वालों! 

आँख होते हुए भी देख नहीं पाते हो? 

लार बस लड़कियों को देख कर टपकाते हो? 


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