बचपन
बचपन
चल आज जिंदगी को संवारते हैं फिर,
खोए हुए बचपन को बुलाते हैं फिर।।
जिस तरह छुपाते थे पहले कभी,
रुमालों में गुलाब छुपाते हैं फिर।।
खोए हुए बचपन को बुलाते हैं फिर...
कागज की कश्ती बनाते हैं फिर,
आसमान में जहाज उड़ाते हैं फिर।।
गोटियां जो कहीं गुम हो गई हैं,
उन्हें निकाल,उंगली से नचाते हैं फिर।।
खोए हुए बचपन को बुलाते हैं फिर...
रूठे दोस्तों को मनाते हैं फिर,
खेतों में दौड़ लगाते हैं फिर।।
तैरना जो कब का छोड़ चुके हैं हम,
शर्तो पे गोता लगाते हैं फिर।।३।।
खोए हुए बचपन को बुलाते हैं फिर...
बागो में अमरूद चुराते हैं फिर,
हथेली पे मेहंदी रचाते हैं फिर।।
गुड्डे गुड़िया जो कहीं गुम हो गए हैं,
उनका ब्याह रचाते हैं फिर।।
खोए हुए बचपन को बुलाते हैं फिर...
बच्चों की तरह उधम मचाते हैं फिर,
बिना होली के रंग लगाते हैं फिर।।
काका के डर से दबे पांव चलना याद है,
उसी तरह कदम बढ़ाते हैं फिर।।
खोए हुए बचपन को बुलाते हैं फिर...
दीवाली के दिए चुराते हैं फिर,
तराजू उन्हें बनाते हैं फिर।।
आसमान में तारे कितने गिने थे, याद है?
चन्दा को मामा बुलाते हैं फिर।।
खोए हुए बचपन को बुलाते हैं फिर...
