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Dr. Madhukar Rao Larokar

Children Stories Drama

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Dr. Madhukar Rao Larokar

Children Stories Drama

बचपन

बचपन

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बचपन की यादें ही रह गयी

वो मस्ती वो आजादी वो बिंदास जीवन।

गर्मी हो सर्दी हो या बरसात

ना सुख-दुःख की चिंता, बीता जीवन बिंदास।


सूर्य देवता कितने भी तपे

धरती को दे चाहे जितनी उष्णता।

साथी संगी पोखर में साथ साथ

जल से देते एक दूजे को शीतलता।


ना रही समय की चिंता

ना हीं काम का कोई बोझ।

एक दूसरे के काम आना

ही था जीने की सोच।


माँ बाप भी कभी ना रोकते

ना कभी थे टोकते।

ना जात ना कोई ऊंच नीच

समानता का पाठ बचपन में थे पढ़ते।


अब तो बचपन सिमटा

किताबें ट्यूशन मोबाइल पर।

बच्चों ने छोड़ा खेलकूद और मैदान

वह तो कैद है अब तो घर पर।


समय ने बच्चों से बचपन जीना

बनाया उन्हें रेस वाले घोड़े।

हँसी खुशी मिलना हुआ दुश्वार

बच्चे बड़े हुए बने जीतने वाले घोड़े।


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