बचपन
बचपन
कितना चंचल, कितना शीतल, कितना मधुर
कितना प्यारा, कितना निर्मल होता है यह बचपन
सबके आंखों का नूर होता है यह बचपन
बच्चों की भूली-बिसरी बातें अच्छी लगती है
पूछे वह तरह-तरह की बातें
बचपन की यह सौगातें अच्छी लगती है
वह बचपन का जमाना था
खुशियों का खजाना था
बचपन की मासूमियत भरी मस्ती
सपनों की बहती थी कश्ती
अपनों का प्यार
था खुशियों का संसार
ना कोई द्वेष, ना कोई बैर
छोटी-छोटी चीज़ों में खुशियां थी
बारिश की बूंदों में कागज की कश्ती थी
कितना बदल गया इतने सालों में
न जाने क्यों समझ नहीं आता
कहां छुप गयी वह बचपन की
मासूमियत समझ नहीं आता
तो फिर बचपन के कुछ पल जिया जाए
जहां ना तो कुछ खोने का डर हो और
ना ही पाने की महत्वाकांक्षा हो
