बचपन
बचपन
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मासूमियत हो मुझ में
मौसम मृदंग बजाए
विद्यालय के प्रांगण में खेलूँ
मन प्रफुल्लित हो जाए
ज्ञान का आभार मानूँ
तितली देख मन हर्षाए
प्रेम व्यवहार करूँ मैं सबसे
संस्कार साथ इठलाये
मित्रता की परिभाषा जानूँ मैं
और मेरी पतंग उड़ जाए
खिलौने से खेलूँ जी भर के
कोई डाँट न पाए
कागज़ की नाव बहे बारिश में
माता पिता का साथ मिल जाए
मेरा बचपन कभी न बीते
जो खेल की सीख दे जाए।