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Vijay Kumar parashar "साखी"

Others Children

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Others Children

बचपन

बचपन

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हर ग़म से वो अनजाना है

हर दुःख से वो बेगाना है

क्या धूप है, क्या छाँव है,

हर मौसम में वो मस्ताना है

यह हमारा बचपन ही है,

हर शूल इसने फूल माना है

हर ग़म से वो अनजाना है


हम रोते है, अपने ग़मों से,

वो दुःखों से बनाता तराना है

यह बचपन भी क्या चीज है,

यह होता हर दिल अजीज़ है,

यह होता सुखों का दाना है

बचपन वो सुहाना पल है,

रहता इंसान इसमें निश्छल है,

ये जिंदगी का गीत सुहाना है

हर ग़म से वो अनजाना है


ना ऊँच है, ना नीच है,

बचपन में सब ठीक है,

ये छुआछूत से अनजाना है

न अमीर है, न गरीब है,

सब ख़ुदा की खीर है,

समानता का खिलाता वो खाना है

हर ग़म से वो अनजाना है


बचपन वो अद्भुत नीर है,

सब बच्चे होते पीर है,

ये सरलता का मयखाना है

जिसने बचपन जिया है,

उसने ही जीवन जिया है,

सबने इसे कोहिनूर माना है

हम रोते है, बचपन के लिये

आँसू खोते है, बचपन के लिये

पर वो लौट नहीं आता है,


बचपन सुनहरा बीता ज़माना है

जीवन मे बचपना जरूरी है,

बचपना से जीना जरूरी है

बिना बचपना के आदमी,

बुझा देता, चराग़ पुराना है

हर ग़म से वो अनजाना है

बचपन ही सबसे प्यारा गाना है



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