बचपन
बचपन
बचपन सुनहरी यादों के तराने थे,
बेवजह मुस्कुराने के भी हजारों बहाने थे;
एक कशिश एक तसल्ली थी,
जो चाहा बचपन मे आसानी से मिलती थी;
कितने तरकीब कितने करतब करते,
अब जाना बचपन कितना कमाल था;
पन्नों की कश्ती बनाते बनाते ऐसा लगता,
हवाई जहाज भी सस्ता उड़ान था;
हवाओं के आगोश में परिंदे को,
उड़ते जब जब हम देखा करते थे;
काश हम भी उड़ सकते पर बच्चे थे,
ये सोच अपनी नाकामी पर रोया करते थे;
सचमुच बचपन कस्तूरी था,
उड़ान हौसलों का तो हौसलों का सही;
पर बचपन का शौक भी,
एक दिन मिटाना बेहद ज़रूरी था।