बचपन - श्रम नहीं शिक्षा
बचपन - श्रम नहीं शिक्षा
बचपन - श्रम नहीं शिक्षा
कन्धों पर जिम्मेदारियों का, बड़ा बोझ उठाता है।
ये ज़ालिम जमाना जिसको, छोटू बोल बुलाता है।
दिन भर कितने अजनबियों से, डाँट दुत्कार है पाता।
तब जाकर ये हर रात को, अपनों को रोटी खिलाता।
इस आयु में जब बाकी बच्चे, हँसते-पढ़ते-लिखते हैं।
क्यों कर कोमल हाथ इनके, जूठे बर्तन घिसते हैँ।
हर सुबह चौराहे पर खुद, वो नंगे पैर आता है।
पूरा दिन फिर लोगों के, गंदे जूते चमकाता है।
नन्हीं नन्हीं मासूम उँगलियाँ, कहीं गलीचे बुन रही हैं।
और कहीं कूड़े करकट में, काम की चीजें चुन रही हैं।
पत्थर तोड़ तोड़ हाथों में, पड़ गये कितने मोटे छाले।
बीड़ी बाँध बाँध बीत गये, कितने बचपन भोले भाले।
ज्येष्ठ की तपती धूप में भी, ये सर पर बोझा ढोते हैं।
शिशिर की ठंडी रातों में ये, बिन कम्बल के सोते हैं।
संकीर्ण अँधेरी खानों में, ये खनिज ढूँढ़ते फिरते हैं।
मार्गदर्शन मिला नहीं, जीवनपथ पे उठते-गिरते हैं।
सर झुका कर बैठे मौन, मुख से कुछ न कहते हैं।
द्रवित दृगों में ध्यान से देखो, कितने सपने रहते हैं।
भटक भटक के कितने बचपन, जा पहुँचे राह अँधेरी।
चलो रोक लें इनका पतन, अब और करें ना देरी।
बच्चे शिक्षा से वंचित हों तो, कल कैसा अपना होगा।
विश्वगुरु बनने का यह निश्चय, मात्र एक सपना होगा।
सब चाहते हैं अपना भारत, बने विश्व की शक्ति बड़ी।
पर जंजीर की शक्ति उतनी, जो सबसे कमजोर लड़ी।
जागो मेरे राष्ट्र प्रेमियों, अपने नेताओं को भी जगाओ।
सभी बच्चों को मिले शिक्षा, ऐसा कोई कानून बनाओ।
यूँ उदासीन तुम न बैठो, धारण कर लो रूप प्रचंड।
आओ मिल प्रज्जवलित करें, विद्या की ज्वाला अखंड।
छोटू जिसको कहते हो, अपने कल की बुनियाद है।
ध्यान से देखो इन आँखों में, एक यही फ़रियाद है।
माँग रहे ये अवसर हम से, ना की कोई भिक्षा।
श्रम करने की नहीं है आयु, इन्हें चाहिये शिक्षा।
