बचपन की वो रंग बिरंगी छतरी
बचपन की वो रंग बिरंगी छतरी
मां ने दी बचपन में मुझको,
एक छोटी छतरी,
थी वो रंग बिरंगी,
उस छोटी छतरी संग,
मैं इधर उधर मंडराता,
बादलों संग नित नए खेल रचाता,
कभी हाथ में लिए उसे मैं,
आसमान में फहराता,
फिर बारिश में बादलों को,
दिखा दिखा मैं इठलाता।
ऐसी थी वो छतरी,
रंग बिरंगी प्यारी छोटी छतरी,
फूलों से सजी,
रंगो से पटी,
क्या चमक थी,
अजब मोह था,
वो शायद बचपन था मेरा........!
आज बरसों बाद,
बारिश में फिर वो दिन याद आए,
जब मिली मुझे वो छोटी छतरी,
एक बंद संदूक में ,
बदरंग,जगह जगह फटी,धूल से पटी,
देखा उसको तो मन भर आया,
आंखों में फिर बचपन लौट के आया,
याद आया मुझे बारिश में नहाना,
छोटी छोटी कागज की नाव चलाना,
छतरी संग इधर उधर मंडराना,
पंख लगा के दूर गगन उड़ जाना,
फिर मीठे सपनों संग,
मां की गोद में सो जाना,
वो शायद बचपन था मेरा........!
अब बस यादें हैं,आंखों में नमी है,
अपने बचपन की,
जिन्हे छोड़ आया मैं बहुत दूर,
कहीं बादलों के पार, दूर गगन में,
आज,वर्षों बाद,
फिर नजर आई ,
मेरी छोटी रंग बिरंगी छतरी,
एक नन्हे हाथों में,
एक नए सपने के संग।
