बचपन के साथी
बचपन के साथी


बचपन के वो साथी
बचपन का वो याराना
भूले से भी ना भूले हम
हर पल याद हमे आते है
वो तेरा हाथ पकड़ कर
हमको स्कूल ले जाना
ओ माँ ओ पापा
याद हमको आज भी
बचपन की वो शरारतें
वो आपस मे लड़ना
ये जगह मेरी है
कहकर लड़ना और
रूठ जाना दोस्तों से
कभी कभी किसी खास
दोस्त की जगह की
ख़ातिर भी लड़ लेते थे
वो अगर लेट हो जाता
कहाँ थी तब समझ कि
ये बेंच तो स्कूल के है
हम जिनको अपना अपना
कहकर आपस में लड़ते थे
ये कहा सुनी का सिलसिला
चलता रहा यू ही जब तक
हम समझदार ना हुए
अब तो बस ये यादें वो
शरारतें ही हँसा देती है