बचपन का नचपन
बचपन का नचपन
बच्चों की निराली हस्ती में, मतवाला हुआ जाता हर कोई उनकी मस्ती में,
उन छोटे-छोटे नटखटता के पिटारों के संग, ढल जाती सारी दुनिया उन्हीं के रंग में।
इनको भरपूर आता पूरे घर को ढालना अपने ढंग में,
सुखद,रंग-बिरंगा और निराला अहसास होता, उनसे उठती हर तरंग में।
सच्चा होता इनका मन, शीतल होतीं इनकी भावनाएँ,
पल में रूठ के पराये हो जाएँ, पल में गले लग कर अपना बना जाएँ।
बचपन का लचीलापन, इसका नचपन सबसे अनोखा,सबसे अनूठा होता है,
खुश होते सब एक किलकारी पे,दुख के सागर में डूब जाते जब घर का बच्चा रूठा होता है।
उसकी तोतली मीठी बातें,उसकी वो शरारातें, बचपन का सफर पुनः करा देतीं उनको,
कोसते नहीं थकते बुढ़ापे की बीमारियों और उसकी तकलीफ़ों को जो।
सुंदर बगिया हो जाती इन नन्हें फूलों के आगमन से,
तेज और उत्साह जीवन में भर जाता,प्रफुल्लित हर चित्त हो जाता,इन नवीन कलियों के खिलने से।
पढ़ाई और शरारतों पे डांट-फटकार घर को बना देती युद्ध का मैदान,
इन नन्हें सरताजों से रौनक भर जाती उस आशियाने में, जो अन्यथा था वीरान और बेजान।
बाल दिवस (14 नवम्बर) के इस अवसर पर देश करता इन होनहार सितारों को सलाम,
जिन में बसते सभी के प्राण,कहलाएंगे कल जो हमारे देश की आन -बान -शान।
मेरी भी एक बिटिया है जिसकी मस्ती-खिलखिलाहट,
जिसकी ठिठोलियाँ पुनः कराती बचपन का रस-पान,
व्यथित दिल को मिल जाता इस तरह जीवन जीने का नया आयाम।
नए-नए आविष्कारों और विचारों से मिलता दुनिया देखने का नया दृष्टिकोण,
अपना के आधुनिक तौर-तरीके उसके, रोशन हो उठता रोम-रोम।
बालपन की निश्छलता और पवित्रता होती शीतल गंगाधारा के जैसी,
मनोहर छवि, मनमोहक अदा संग कुशाग्र बुद्धि, सर्व-सम्पन्न होती बच्चों की हस्ती।