बौराया वसन्त
बौराया वसन्त
1 min
318
वह देखो वसंत ऋतु आई
बौराई कैसी पूरी अमराई
खग-वृंदों ने भी ली अंगड़ाई।
थी अब तक शीत ऋतु ही छाई
शीत-लहरी ही बहती आई
अब मौसम ने ली अंगड़ाई।
प्रेमी जनों की पुकार पर यह आई
कवि वृंदों हेतु अवयव लाई
देते देव भी इसकी दुहाई।
बौराया अमलतास, कोकिल बौराई
बौराये खग-मृग, नवयौवना बौराई
प्रकृति भी नवजीवन पा मुस्कराई।
