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Richa Pathak Pant

Others

5.0  

Richa Pathak Pant

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बौराया वसन्त

बौराया वसन्त

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वह देखो वसंत ऋतु आई

बौराई कैसी पूरी अमराई

खग-वृंदों ने भी ली अंगड़ाई।


थी अब तक शीत ऋतु ही छाई

शीत-लहरी ही बहती आई

अब मौसम ने ली अंगड़ाई।


प्रेमी जनों की पुकार पर यह आई

कवि वृंदों हेतु अवयव लाई

देते देव भी इसकी दुहाई।


बौराया अमलतास, कोकिल बौराई

बौराये खग-मृग, नवयौवना बौराई

प्रकृति भी नवजीवन पा मुस्कराई।



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