बौनी उड़ान
बौनी उड़ान
गीत
हर एक चुनौती कुचली है
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उड़ान ना बौनी हो पाई
हर बाधा को बौनी कर दी
हर एक चुनौती कुचली है
खाली अपनी झोली भर दी
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नाहर खान हरियाणा का
जिसके थे दोनों हाथ नहीं
लिख कर पैर से दसवीं की,
जीवटता उसकी बनी रही
सरकारी सेवा से वंचित
वो अब भी दर दर फिरता है
मैवात का नाम किया रोशन
देखें कब भाग संवरता है
कमतर ना खुद को माना हो,
बौनी उसने हर हद कर दी
हर एक चुनौती कुचली है
खाली अपनी झोली भर दी
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विकलांग एक अमरोहा का,
होकर बॉडी बिल्डर निकला
क्षमता ऊर्जा से भरा फहीम,
था लाखों से बेहतर निकला
व्हील चेयर के जरिये से
उसने कसरत करना सीखा
ये वही सितारा है जिसने
डर से न कभी डरना सीखा
जिसको न तनिक भी चिंता थी,
के गरमी है के है सरदी
हर एक चुनौती कुचली है
खाली अपनी झोली भर दी
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गुदड़ी के लाल "अनंत" कई,
पत्थर से बन निर्झर निकले,
तपते सूरज में चले मगर
वो रुके नहीं अक्सर निकले
मुश्किलें थी पर्वत जैसी पर,
हर मुश्किल को था पार किया
दुत्कारे गए मगर फिर भी
चलना केवल स्वीकार किया
आंधी में दीप जला कर के
अंधियारों की छुट्टी कर दी
हर एक चुनौती कुचली है,
खाली अपनी झोली भर दी।
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अख्तर अली शाह "अनंत" नीमच