बाल दिवस पर विशेष: तुम फिर से आ जाओ बचपन
बाल दिवस पर विशेष: तुम फिर से आ जाओ बचपन
छुटपन में ख्वाबों की गलियों
में खेला करते हैं लुका छुपी
दौड़ते भागते खट्टे मीठे बेर चखते
बारिश के मौसम सुहाने बहुत लगते
किताबों के पन्ने फाड़कर जब हम नाव बनाते
पिताजी यदि पकड़ लेते उठक बैठक लगवाते
दौड़ते भागते कब हम उम्र के उस पड़ाव में
किशोरावस्था जवानी की दहलीज पर रखते
शुरू हो गया फरेब का सिलसिला
टाई बेल्ट पहनकर हम कस गए पर
तब भी अंदर थोड़ा सा बचपन था
छुप-छुपकर जो गलतियां करते
सजते, संवरते किसी अजनबी चेहरे को
देख कर मुस्कुराना 4 लड़कों की टोली दो
लड़कियों का गुपचुप बातें करना
फिर याद आता है वह लड़ना झगड़ना
13 से 18 के बीच का सफर ज्यादा लंबा नहीं
पर थी कहानियां ज्यादा जो अमृत करने
पर कभी आंसू तो कभी एक अजीब सी ठंडक देती है
फिर युवा होते ही बड़ी-बड़ी सोचे हिमालय सी
शिखरों से तूफानों से लड़ने की बातें करते हम
कुछ कर गुजरने की बातें किया करते थे
दिल्ली दूर नहीं लगती थी मुंबई
अकेले जाने का दमखम रखते थे
बचपन भी जान लगने लगा
ऐसा लगा था हम बड़े हो गए हैं
अनुभव बताने लगा था अचानक हो गए हम प्रौढ़
जिम्मेदारियों का टोकरा सर पर रख लिए थे
हंसी मजाक पर भी कमी हंसते नहीं
कैसा भी खाना हो अब नाक मुंह नहीं सिकुड़ते
सब कुछ बस समय तालिका से करते
सब कुछ रहता, पर कुछ भी नया नहीं रहता,
बस वही रोज की कांय कांय है
आपा धापी पैसा भाग कमाने की हौ हौ,
वक्त मानो ठहर गया , रुक गया दहलीज पर
अब क्यों नहीं जल्दी समय गुजरता
कपड़े क्यों नहीं होते छोटे
कहां गई वह बच्चो की टोली
जिनके साथ खेले आंख मिचौली
वह बेर और कच्चे अमरुद बहुत याद आते
नहीं भाती ये अमीरी, यह नौकरी यह गुलामी
याद आती तो बस हो बचपन की मीठी गोली
फेरीवाले के गुब्बारे और वह हाथी घोड़े
मां के हाथों के हाथों से खाई
दूध रोटी बहुत याद आती हैं
दहलीज पर जवानी भी फरेब के कपड़ों से लदी
कुछ रास नहीं आता बचपन में आओ लौट चले बचपन में।