बादल काले-काले आये
बादल काले-काले आये
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बादल काले-काले आये,
शोर मचाकर धूम मचायें।
आसमान है काला-पीला,
वर्ष-वर्ष के कर रहे गीला।
तनन-तनन से तान सुनायें,
मेंढ़क उछले व गान सुनायें।
मछली ख़ुद को लगी बचाने,
मोर जोर-जोर से चिल्लाने।
पत्ते पेड़ों से तब टकराएं,
टप-टप से वे बूँद गिरायें।
धरती हँसती औ मुस्काती,
वर्षा जल से प्यास बुझती।
सभी जगह हुआ पानी-पानी,
बच्चों ने अब बात न मानी।
जड़ औ चेतन हुआ मगन,
इन्द्रधनुष अब छुए गगन।
पीला-पीला सूरज निकला,
लोहे सा है पिघला-पिघला।
चार दिशाएँ लेती अंगड़ाई
निशा को बाहों में भर लाईं।।
