अतीत
अतीत


अकेले बैठे यूँ कभी मन में जब
अतीत और आज टकराता है
जाने क्यों जीत हमेशा
अतीत ही जाता है।
लुभावने सपने लिए जो
आज मुझे बुलाता है।
मन चुपके से यादों के
आगोश में चला जाता है।
तन्हा जगमगाती रातें जब
शानों-शौक़त की बातें करती है।
अँधेरें में सबका छत पर बैठना
फिर याद बहुत आता है।
आज जब मनचाही हर
चीज़ खरीद लेते है।
तब हर छोटी चीज़ पर लड़ना
सोच मन मंद मंद मुस्काता है।
बंद गाड़ी में आज जब
चैन से सफ़र करते है।
स्कूटर पर चिल्ला कर बातें करना
फिर भकझोर सा जाता है।
आज जब देश और दुनिया के
खाने का सवाद जुबान पर है।
माँ के खाने के लिए
फिर भी मन ललचाता है।
अकेले बैठे यूँ कभी मन में जब
अतीत और आज टकराता है।
जाने क्यों जीत हमेशा
अतीत ही जाता है।