अर्ज़ किया है
अर्ज़ किया है
मुकम्मल और गुरबत एक नज़रिया है जनाब
नज़ारा नीचे तो हम साहुकार और ज़रा उपर
का नज़ारा सामने आय तो हस्ती बेकार
सीधा देखो जनाब तो सब बरकरार
जिन्दगी कि आज़माइश रु ब रु हो जाये,
बशर्त ये के हमारे इरादों के दरमियान
बस ये तकदीर के दखले अन्दाज न हो
साँसों का कोई मुस्तकबिल नहीं लेकिन
वाह रे उम्मीद जो जिन्दगी को क़यामत
तक जिन्दा रखती है
कुछ तो है हवाओं में वर्ना ये हलचल दोनो
तरफ बराबर न होती
ये ज़ालिम हस्ती है न जो हमारा मुस्तकबिल
पर्दे में ही कायम रखती है वर्ना हम भी
शख्स है कुछ नाम के
करीब कब रकीब बन गये खबर न हुई
हम तो फर्ज मोहब्बत का कायम कर के
बदनाम हुये