अपराध

अपराध

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हीन भावना 

अंदर ही अंदर 

कचोटती तन - मन

न चैन न नींद, तड़पता मन

अपराध बोध बढ़ता प्रति- दिन 

अपने मन को समझाने में संलग्न..

चाह कर भी न उभर पाए मन

प्रायश्चित को तड़पे हर पल

गर समझ सका स्वयं

तो सुलझ सके 

मन का बोध

अपराध


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