अपना घर
अपना घर


होती अपने घर की बात अलग
मिलती ख़ुशियों की झलक
चाहें छोटा हो या बड़ा
अपना अस्तित्व तो इससे जुड़ा
जहां धूप और छाॅंव होती
भंवरे गुनगुनाते चिड़िया गाती
आंगन में ख़ुशियाँ लहराती
जो हर पल है मुझ को भाती
बचपन का घर होता न्यारा
जहां बीतता बचपन सारा
माता पिता के स्नेह छाँव में
पाते असीम प्यार दुलार
पलक झपकते ही जैसे
पूरा बचपन लेते गुजार
खुशनसीब होते कुछ लोग
जो एक ही घर में
पूरा सफर तय कर लेते हैं
उनके हर सुख दुख के साथी
शायद अपने घर होते हैं
सबकी किस्मत भला एक
जैसी कहां होती है
कई लोगों के कहने को तो
कितने घर होते हैं
पर वास्तव में कोई भी
अपना घर नहीं होता
घर से गर दूर रहें हम
तो घर की याद सताती है
घर आने को तरसते हैं
आँखें भर भर जाती हैं
घर ऐसा हो
जहां सभी को
खुलकर हँसने की जगह हो
हर कोने में ख़ुशियाँ झलके
स्नेह प्यार की महक हो
सारा जग लगे पराया
अपने घर में मिलती छाया
यूं लगता है जैसे
हरदम संग चलता है साया
कितने ही लोग इस घर को
चारदीवारी समझते हैं
इसके लिए कुछ करने की
जिम्मेदारी नहीं समझते हैं
वक्त ऐसा आ जाता है
सिर्फ हिस्सेदारी समझते हैं
इस घर को ईट पत्थर का ढाँचा
समझ ना तू इंसान
देकर थोड़ी अहमियत
इसे भी दो सम्मान