अंतःमन
अंतःमन
हर जीव के अंदर अंतः मन होता है,
वह ही सुख दुख का कारण होता है।
अंतः मन का सुख हम में ही निहित
होता है
पर मन हमारा इधर-उधर भटकता
रहता है
तब हमारा जीवन बेरंग सा होता है
और चेहरे का नूर कहीं खो गया
होता है।
यहाँ से उदासीनता का आरंभ
होता है
और आक्रोश धीरे-धीरे घर कर
जाता है।
अपने को समझना बहुत जरूरी
होता है,
आत्म-सुख और उस का पोषण
अलग-अलग होता है।
हमारा कर्म अगर आत्म सुख का
कारण होता है
तो हमारा जीना सरल होता है।
हमारी विभिन्न क्षमताएं उसकी
पूर्ण पोषण होती है
तब जीवन पथ सुगंधित होता है
और हमारा चित्त शान्त हो अग्रसर
होता है।
चारों ओर आनंद ही आनंद होता है।
हर जीव का सुख उसके अन्दर ही
निहित होता है।