अनोखी हवा हूँ
अनोखी हवा हूँ
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ना मेरा घर है ना कोई ठिकाना
अपने मस्ती में बस झूमे ही जाना
सबको लुभा दूं मैं ऐसी अदा हूँ
सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूँ।
बस्ती शहर कभी जंगल से होकर
कभी पहाड़ों से खा जाती हूँ ठोकर
कर दूं जवान सबको मैं ऐसी दवा हूँ
सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूँ ।।
सागर की लहरों को दिल से लगाते
फूलों से मिलते कलियों को हंसाते
क्या मां क्या बहनें, मैं बुआ की बुआ हूँ
सुनो बात मेरी अनोखी हवा हूँ।।