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पुनीत श्रीवास्तव

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पुनीत श्रीवास्तव

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अनमोल !

अनमोल !

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सोते हुए अपने बच्चे को निहारना

करवटें अजीब सी रोज की नई नई 

उसकी मुस्कुराहट खिलखिलाहट जो आये


 कभी वजह से कभी बेवजह सी चीज पर,

छोटी छोटी उंगलियों ,हथेलियों को छुना

खास हो जाती है महक जोनसन एंड जोनसन


वाले पाउडर की बच्चों को लगने के बाद,

बित्ते भर के कपड़े, बिना भाषा ज्ञान के

आधे अधूरे शब्द या अक्षर,


बड़े महीन से होते हैं,

पंखे की हवा से जो उड़ते हैं बाल 

रोना भी हंसना भी सोना भी जागना भी 

सब ही तो अनमोल है  

आज कल अमीर हैं हम भी इसी अहसास से।


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