अनकहे रिश्ते
अनकहे रिश्ते
हर मोड़ पर
ख़ुशियों के साथ ग़म सर उठाये
रहता है
दुख के क्षणों में भी दिल
सुख की आस लगाये रहता है
हर पल हम जिनके साथ गुजारते है
सुख दुख के लम्हें
ये जग उनको ही हमारा अपना
बताये रहता है
अपना कौन है और क्या होते है रिश्ते
ये जग सदैव हमें भरमाये रहता है
ग़म क्या देगा जमाना हमें
जो अपना है वो ही हमें औकात
दिखाये रहता है
काम हो तो मिठे बोल होते है लबों पर
काम निकलते ही हमें बेकार सामान
बताये रहता है
दिल में एक के बाद एक गांठ
बांध हम पर रिश्तों का एहसान
जताये रहता है
होठों से छीन हँसी
जीवन में कुछ इस कदर भर देते है
अपने खालीपन को
कि अनकहे रिश्ते ही दिल का
हर अरमान सजाये रहता है
न होती है कोई शर्त न ही कोई बंधन
ये अनकहे रिश्ते ही हर ज़ख्म को
भरमाये रखता है
पिछले जन्म का बंधन कह लो
या कह लो किसी पुण्य का फल
ऐसे रिश्तों को
अपनों की ठोकर के बाद
अनकहे रिश्ते ही दुख के क्षणों में
होठों पर मुस्कान सजाये रहता है
