अंजान
अंजान
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जन्म लिया जब मानव का
कर्मो से क्यों अंजान करे
समझ हे जब सच झूठ की
न्याय से क्यों अंजान रहे
ज्ञान हे जब धर्म अधर्म का
पाखंड से क्यों अंजान रहे
नारी ही नारी की दुश्मन
इस सत्य से क्यों अंजान रहे
आमिर खा जाए हक गरीब का
फिर मानवता से क्यों अंजान रहे
कूदृष्टि डाले जब अपना ही सगा
फिर रिश्तों से क्यों अंजान रहे
बहन राखी का सौदा करे
फिर सम्मान से क्यों अंजान रहे
दामाद ही बने जब घर का मुखिया
फिर पुत्र से क्यों अंजान रहे
बेटियों को ही समझे सबकुछ अपना
फिर ममता से क्यों अंजान रहे
चक्रव्यूह रचा जीवन भर
फिर अंत समय से क्यों अंजान रहे
