अनजान संग- समस्या हल
अनजान संग- समस्या हल
सारी चिंता मिट जाती है, और जाते हैं सुधर कठिन हालात।
धीरज धरकर सुनियोजित ढंग से, काम करें तब बनती बात।
आता है तब स्वर्ण सवेरा,गुजरती समस्याओं वाली काली रात।
अनजाने भय न सताते हैं हमको,काबू में हैं रहते सब ज़ज़्बात।
कर पाते हम निर्भीक सामना, चुनौती हो कैसी कुछ नहीं बात।
समस्या विकट निबट जाती है,जब सूझ-बूझ से लेते हम काम।
चुनौती चिंता मिट जाती है, होती सुबह सुहानी और सुंदर शाम।
पास के कस्बे से गाॅ॑व जा रहा था, खुश होकर बाइक पर मैं सवार।
पंक्चर हो गया पिछला पहिया, गरम-गरम लू की थी चल रही बयार।
लादी बाइक आते ट्रैक्टर की ट्राली पर, वर्कशाप पर ली थी उतार।
पैसा नहीं था एक जेब में, पर्स तो घर पर ही गया था मैं भूल।
रिपेयरिंग का भुगतान हो कैसे? उधार करने का नहीं मेरा उसूल।
वर्कशाप पर था जो सहायक ,उसे संग ले सुधारी अपनी वह भूल।
घर ले जाकर भुगतान किया, वापस लाकर वर्कशाप पर छोड़ दिया।
गुजरा वह दिन अनजानों के संग, और बिगड़ी हालत का हुआ समाधान।
