अंधी माँ का ख़त
अंधी माँ का ख़त
अंधी माँ का ख़त
अमरुत से भरा है दिल मेरा,
जो समंदर जितना है सच,
पूनम चंद के पप्पू के पास,
अंधी माँ लिखवाती खत
पप्पू उसका मुंबई गांव में,
परेश भाई प्रेम चंद नामे
लिखवाती है मैया,
पांच वर्षो में पहुँची नहीं एक पाई
कागज़ की एक चिट्ठी भी नहीं मिली मेरे भाई
समाचार सुन के तेरा,
रोना हमे कितने दिनों?
नाती लिखता है कि,
पप्पू और मेरा मिलन होता है रोज़ रोज़
पूरे दिन मजदूरी करे,
होटल में रात को खाए
रोज़ रोज़ नए कपड़े पहने
पानी की तरह पैसे फेंके
होटल का खाना अच्छा नहीं,
रखना खर्च का हिसाब
दवाई दारू के पैसे,
कहाँ से लाएगा मेरे भाई
काया तेरी रखना रुड़ी
हम गरीबो की वही है मुड़ी
घर बेचा और खेत बेचा
तंबू मे किया है निवास
गेहूँ कि रोटी मिले नहीं
उस दिन अकेला पानी पीती
तुम्हें मिले पकवान की थाली
हमे मिले रोज़ चाय की प्याली
लोगो के घर काम मैं करती,
अंधी माँ को कुछ नहीं देती धरती
तेरे गांव बिजली के दिए
मेरे घर अंधेरा पीए
लिखी तंग तेरी अंधी माँ का
पढ़ना जय श्री कृष्णा
घर में नहीं है अन्न का दाना
अंधी माँ के लिए तुम कफन लाना
अब नहीं है जीने की इच्छा
गुलाब चंद कहे ऐसा है किस्सा
माँ को तुम प्यार भी करना
और उसके तुम पैर को छूना
