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sandeeep kajale

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ऐ काश कहीं ऐसा होता

ऐ काश कहीं ऐसा होता

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ऐ काश कहीं ऐसा होता

पंछी बनके उड़ते नील गगन में

रहते हम अपने ही मगन में

ना रहता बंधन, ना खींचे कोई डोर

मनमर्जियां कहते, जा सकते किसी भी ओर


ऐ काश कहीं ऐसा होता

जिंदगी में ना होती कभी बगावत

आशियाना रहता हमेशा सलामत

ना फसते, बीच मझदार में

जीत का जशन होता, अपने ही हार में


ऐ काश कहीं ऐसा होता

यूँ बंद ना होते जीने के रास्ते

उम्मीद के धागे, बीके सस्ते

अंजाने ना होते ये सवाल

सारी उम्र ना मिलता मलाल


ऐ काश कहीं ऐसा होता

रिश्तों में ना रहती तनहाई

ना हाथों में आती अंधेर गहराई

साँसों से होती चाहतें

जिनमें हो जाती राहतें


ऐ काश कहीं ऐसा होता

जुड़े रहते हमेशा सपनों से

दर्द हासिल ना होता अपनों से

एहसास के लौ कायम जलती

हमारी तक़दीर ऐसे ना उलझती।


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