ऐ काश कहीं ऐसा होता
ऐ काश कहीं ऐसा होता
ऐ काश कहीं ऐसा होता
पंछी बनके उड़ते नील गगन में
रहते हम अपने ही मगन में
ना रहता बंधन, ना खींचे कोई डोर
मनमर्जियां कहते, जा सकते किसी भी ओर
ऐ काश कहीं ऐसा होता
जिंदगी में ना होती कभी बगावत
आशियाना रहता हमेशा सलामत
ना फसते, बीच मझदार में
जीत का जशन होता, अपने ही हार में
ऐ काश कहीं ऐसा होता
यूँ बंद ना होते जीने के रास्ते
उम्मीद के धागे, बीके सस्ते
अंजाने ना होते ये सवाल
सारी उम्र ना मिलता मलाल
ऐ काश कहीं ऐसा होता
रिश्तों में ना रहती तनहाई
ना हाथों में आती अंधेर गहराई
साँसों से होती चाहतें
जिनमें हो जाती राहतें
ऐ काश कहीं ऐसा होता
जुड़े रहते हमेशा सपनों से
दर्द हासिल ना होता अपनों से
एहसास के लौ कायम जलती
हमारी तक़दीर ऐसे ना उलझती।
