अधर
अधर

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अधर पर धर सदा मुरली,
मधुर मुस्कान भरते हैं।
मनोहर श्याम राधा के,
उसी का नाम जपते हैं।
कहे राधा कि सौतन है,
कन्हैया बाँसुरी तेरी
अधर पर रख इसे अपने
मेरा अपमान करते हैं।
तेरा ही नाम रटती हूँ,
अधर पर तू सदा मेरे।
गया तू द्वारिका जबसे,
कि रहती है कज़ा घेरे।
सुनो! कान्हा भुलाऊँ भी
तुझे इस हाल में कैसे-
बता दो क्या ख़ता मेरी,
सजा भी दो मुझे मेरे।।