अद्भुत
अद्भुत
दूधिया चांदनी में नहाता आकाश,
आकाश में टिमटिमाते लुभावने तारे,
महकती पवन, मदहोशी का आलम।
क्या धरती क्या चमन,
और हम तुम हाथों में हाथ लिए,
मेरे दामन को छूता तेरा एहसास।
यूँ ही एकटक निहारते हुए उस चाँद को,
हरी दूब पर लेटे हुए।
वह निराकार श्वेत दुशाला ओढ़े हुए,
मोहब्बत का मसीहा।
कितनी उल्फत कितने फसाने,
देखें उसने कितने ज़माने।
वो रूठने वो मनाने।
कुछ हमेशा के लिए एक हो जाते,
कुछ बिखर कर टूट जाते।
फिर वह तन्हाइयों में लिपटी रातें,
वो शिकवे वो शिकायतें।
वो रात भर जागती ऑंखें ,
जिनका बस तू गवाह था।
वह आँसू सिसकियां,
वह टूटते दिलों को संभालता हुआ,
सबके साथ चलता हुआ।
झांकता हुआ खिड़कियों से,
निहारता हुआ सब प्रेमियों को,
सौम्य अद्भुत अद्वितीय,
वह पूनम का चाँद ,
कभी करवा चौथ का कभी ईद का चाँद ।
निराकार, फिर भी साकार करता,
सदियों से, कितनी मोहब्बतें,
कितनी कहानियां।