अब मैं बड़ी हो गयी हूँ
अब मैं बड़ी हो गयी हूँ
लोग कहते हैं अब मैं बड़ी हो गयी हूँ,
अब मुझे झूठ बोलना आ गया,
खुद को ही गुमराह करना आ गया,
सीख गयी हूँ मैं भी मन और ज़ुबान को अलग करना,
अब मुझे दिखावा करना आ गया,
शायद वो निष्पक्ष निर्दोष बचपन चला गया।
सही कहते हैं लोग कि मैं अब बड़ी हो गयी हूँ।।
जब समझदार नहीं थी तो,
ख़ुद को पहचानती थी मैं,
जब समझदार हुई तो,
ख़ुद से अजनबी हो गयी हूँ,
ख़ुद से दूर धूमिल सी कहीं,
दुनिया की भीड़ में,
दुनिया सी हो गयी हूँ
सही कहते हैं लोग कि मैं अब बड़ी हो गयी हूँ।।
प्यार करती थी कभी बिना शर्त सबसे,
नादान थी तब अनजान थी जग से,
अब रिश्तों में मोलभाव करना आ गया है,
कभी सब थे अपने,
अब कुछ को अपना कहना आ गया है,
लगा झूठ का मुखौटा,
मैं भी खड़ी हो गयी हूँ।
सही कहते हैं लोग कि मैं अब बड़ी हो गयी हूँ।।